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शुक्रवार, 5 जून 2015

क्या आप पहचान पायेंगे ?

// स्वच्छ व सुरक्षित खान-पान ही स्वस्थ जीवन की एक महत्वपूर्ण शर्त है //

अक्सर हम देखते हैं कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उत्पादित किये जाने वाले खाद्य-पदार्थ भी संदूषित या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पाये जाते हैं; यह उनका हाल है जिनके पास हजारों करोड़ रूपये का सेटअप है ऐसे में जरा कल्पना तो कीजिये हमारे देश में वैध/अवैध रूप से चलने वाली लाखों ईकाईयों में निर्मित किये जाने वाले खाद्य-उत्पादों के बारे में, मैं आपके सामने दो उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ :



1. हम अपने एक मित्र के साथ थे, हमारे मित्र पान खाने गए क्योंकि वो पान के बड़े शौक़ीन हैं। जैसे ही उन्होंने पान मुंह में डाला तत्काल ही उन्होंने पानवाले को यह कहते हुए कि " पेस्ट लगाया है क्या ? " थूक दिया, मेरे लिए यह नया अनुभव था, मैंने विक्रेता से पूछा कि पेस्ट क्या होता है ? उसने ज़ुबानी कोई जवाब देने की जगह मेरे सामने एक डिब्बी रख दी , उत्सुकतावश मैंने उस का निरीक्षण किया तो पाया कि अंदर भरा हुआ पदार्थ देखने में हुबहू पान में लगाये जाने वाले कत्थे जैसा था लेकिन उस डिब्बी पर अंगरेजी में लिखा हुआ था " Only for Industrial Dying/Tanning Use ( सिर्फ औद्योगिक रंगाई/चमड़ा पकाई के उपयोग हेतु ) " इसके अलावा ना तो उत्पाद के बारे में कोई जानकारी थी और ना ही उत्पादक के बारे में ! हालांकि प्रतिष्ठित और पीढ़ियों से चलती आ रही पान की दुकानें इसका इस्तेमाल नहीं करती पर आप भी कौन सा पान हमेशा एक ही जगह खाते हैं ?

2. हमारे यहाँ और गाँवों में लम्बी ट्यूबनुमा पैकेटों में शरबत को बर्फ जैसा जमाकर 'पेप्सी' के नाम से बेचा जाता है । इसमें पानी, सैकरीन, कृत्रिम रंग/सुगंध बस यह चार ही चीजें होती हैं, पेट संबंधित 70-75 % बीमारियाँ दूषित जल के कारण होती हैं ,इसके अलावा इसमें मिलाये जाने वाले अन्य तीन पदार्थ भी हानिकारक हैं । पिछले दिनों हमारे जिला मुख्यालय में एक यह पेप्सी बनाने वाली ईकाई पकड़ी गई जो कि नितांत अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में अवैध रूप से एक कबाडखाने के पीछे संचालित हो रही थी और यहाँ पाया गया कि पैकेटों में भरे जाने वाले घोल में मरी हुई मक्खियाँ अतरा रही थीं ।

दोनों ही चीजें धड़ल्ले से अभी भी बिक रही हैं । हमारे देश में नियम हैं, मानक हैं, कानून हैं पर उनका परिपालन कराने वाली एजेंसियों में ईमानदारी का घोर अभाव है; क्योंकि एक तो अमला ही जनसंख्या के हिसाब से अपर्याप्त है और दूसरा कारण है कि बंधे हुए हफ्ते या महीने से सबकुछ बनाने/बेचने का अधिकार प्राप्त हो जाता है । नाला/सीवर के मलजल में धोकर लाई हुई सब्जी भी किसी नूडल जितनी ही हानिकारक है पर क्या आप पहचान पायेंगे ?


चलते-चलते आपको बता दें कि 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' ( WHO ) द्वारा इस वर्ष ( ई. 2015 ) का 'विश्व स्वास्थ्य दिवस ' का विषय है 'खाद्य सुरक्षा (Food Safety)' अब अपने अमित को आज्ञा दीजिये, मेरे प्रणाम स्वीकार करें । 

चित्र साभार  :  MID DAY  



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