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सोमवार, 10 अगस्त 2015

मोहब्बत का मुरब्बा


जी हाँ , कैसे बनता है ?, बताता हूँ,


विधि क्रमांक - 1 : युवतियाँ MyChoice का उद्घोष करती हुई, बिना किसी झाँसे के अपनी मर्जी से जिस्मानी ताल्लुकात बनाती हैं।
विधि क्रमांक - 2 : या / होता यह है कि युवा प्रेमी जोड़े “ प्यार किया तो डरना क्या “ स्टाइल में घर से भाग जाते हैं।
     इसके बाद वो या उनके परिजन रपट दर्ज कराते हैं और पुलिस “ कानून के हाथ लंबे होते हैं “ स्टाइल में उनको खोज निकालती है या लड़के के घर पर दबिश देना शुरू कर देती है। अब होती है मोहब्बत का मुरब्बा बनने की प्रक्रिया चालू , जो लड़की अपनी मर्जी से, पूरे होशोहवास में घर से भागी थी , अब वह “ पारो “ से “पीड़ित” बन जाती है, और “ मजनूँ “ बन जाता है “ मुलजिम “, तो, जनाब आशिक के खिलाफ अपहरण से लेकर दुष्कर्म तक की धाराएँ लगा कर झूठा प्रकरण तैयार कर दिया जाता है।



     अब चूँकि माननीय न्यायालयों के आदेश का पालन करते हुये “पीड़िता” की पहचान तो गुप्त रखी जाती है, लेकिन “ मजनूँ “ का सचित्र जीवन परिचय पत्र पत्रिकाओं और न्यूज़ चैनल पर दिखा दिया जाता है। लडके का परिवार किन किन प्रताड़नाओं से गुजरता है, यह जानने की फुरसत किसी को नहीं। अब हमारे प्यारे फेसबुकियन मित्र कहेंगे कि अगर वो निर्दोष है तो उसे न्यायालय के आदेश का इंतज़ार करना चाहिये, उनका ऐंसा कहना ठीक भी है , क्योंकि उनमें से अधिकाँश पुलिस और न्यायालयीन प्रक्रियायों से वाकिफ ही नहीं हैं। न्यायालय भी क्या करें इस देश में मुकदमेबाजी भी तो महामारी बन गई है।

तो दोस्तों “ मजनूँ “ से “ मुलजिम “ बने लड़के की जिंदगी तो नरक बन ही जाती है, और उसे याद आते हैं स्व.मो.रफी साहब जिन्होंने कभी कहा था :-
“दोनों ने किया था प्यार मगर मुझे याद रहा तू भूल गई 
मैने तेरे लिये रे जग छोड़ा तू मुझको छोड़ चली "

साथ ही उसके परिजन भी विकट कष्ट भोगते हैं, अब आप समझे कि कैसे बनता है मोहब्बत का मुरब्बा.........सावधान मित्रों कहीं आप भी किसी से दिल तो नहीं लगा बैठे ?

रहा नहीं गया सो ये कहानी सुना दी, कहा सुना माफ़ करना .....


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