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बुधवार, 10 मई 2017

परियों का जन्म




स शाम हवा उदास थी, पत्ता-पत्ता उदास था और वो दोनों भी उदास थे लेकिन आनंद ने जब परी के मुरझाये चेहरे को देखा तो उससे रहा नहीं गया उसे लगा कि अंदर कहीं कोई पैना सा नाखून लगातार खरोंचे जा रहा है इस चुभन को मिटाने उसने कहा :-

" सुनो "
परी ने अपनी भावशून्य नजरें उस पर स्थिर कर दीं
" क्या तुम्हें पता है परियों का जन्म कैसे हुआ ? "


परी की आँखों में अनभिज्ञता और प्रश्न का भाव उभर आया, आनंद ने इशारा समझ लिया

" मैं बताता हूँ "
" जब सूरज की पहली किरण बर्फ से ढके पहाड़ों से टकराई तो वो सात रंगो में बिखर गई हरेक रंग से एक परी बनी, जब नदी पहली बार बही उसकी धारा की हरेक कलकल से एक परी बनी, जब कली पहली बार खिली उसकी खुशबू के हरेक कतरे से एक परी बनी और जब बच्चा पहली बार हंसा तो उसकी किलकारी मोतियों में बदल गई हरेक मोती से एक परी बनी "

परी के होंठों पर एक मुस्कान कौंध के चली गई, आनंद को चुभन कुछ कम सी होती लगी.....

( लिखी जा रही एक कहानी से - © डॉ. अमित कुमार नेमा,  चित्र: साभार - गूगल छवियाँ )





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